भारत में माइक्रोफाइनेंस | Microfinance in India
कुछ साल पहले के एक छोटे से गाँव की बात करें, जहां के छोटे-मोटे व्यापारी और किसान अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी रहे थे। इस छोटे से गाँव के वीर किसान राजू ने अपने दोस्तों के साथ एक छोटी सी माइक्रोफाइनेंस समूह की शुरुआत की। अपने सपने साकार किये |
आज, भारत में लगभग 300 से ज्यादा माइक्रोफाइनेंस कंपनियां हैं जो छोटे व्यापारी और किसानों को आर्थिक समर्थन प्रदान कर रही हैं। इस आंकड़े का यह मतलब है कि माइक्रोफाइनेंस भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
भारत की पहली माइक्रोफाइनेंस कंपनी और शीर्ष बैंक
भारत में माइक्रोफाइनेंस की शुरुआत 1970 में हुई थी, और इसमें भारतीय ग्रामीण बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भारत में इसकी शुरुआत करने वाली पहली माइक्रोफाइनेंस कंपनी ‘बंदन बैंक’ थी जो आज भी सफलता की नई ऊँचाइयों की ओर बढ़ रही है।
MFIs और नियंत्रण
भारत में MFIs को नियंत्रित करने का कार्य निगमित बैंकिंग क्षेत्र के अधीन आता है। इससे सुनिश्चित होता है कि इन संस्थाओं का उचित और निष्कर्ष प्रबंधन होता है।
भारत में माइक्रोफाइनेंस के कुछ रोचक तथ्य
- भारत में माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं द्वारा दिए गए ऋणों की औसत राशि लगभग 10,000 रुपये है।
- माइक्रोफाइनेंस के माध्यम से सबसे अधिक ऋण कृषि, व्यापार और शिक्षा के क्षेत्रों में लिए जाते हैं।
- महिलाएं माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं से ऋण लेने वालों में पुरुषों की तुलना में अधिक हैं।
Q. बैंक और माइक्रोफाइनेंस में क्या अंतर है?
बैंक और माइक्रोफाइनेंस दोनों वित्तीय संस्थान हैं जो लोगों को ऋण प्रदान करते हैं। लेकिन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं।
- बैंक आमतौर पर बड़े व्यवसायों और उच्च आय वाले व्यक्तियों को ऋण प्रदान करते हैं, जबकि माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं आमतौर पर छोटे व्यवसायों और निम्न आय वाले व्यक्तियों को ऋण प्रदान करती हैं।
- बैंक आमतौर पर ऋण के लिए उच्च ब्याज दरें लेते हैं, जबकि माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं आमतौर पर ऋण के लिए कम ब्याज दरें लेती हैं।
- बैंक आमतौर पर ऋण के लिए अधिक जटिल अनुप्रयोग प्रक्रियाएं होती हैं, जबकि माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं आमतौर पर ऋण के लिए सरल अनुप्रयोग प्रक्रियाएं होती हैं।
माइक्रोफाइनेंस संस्थान कैसे पैसा कमाते हैं?
माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं अपनी सेवाएं प्रदान करके उस समय का भुगतान करती हैं जब बैंकों और अन्य संस्थाओं के लिए यह संभावना नहीं होती। इससे यह साबित होता है कि वे अच्छी सेवा प्रदान करने के साथ-साथ समाज में भी उपयोगी हैं।
माइक्रोफाइनेंसिंग अच्छी है या बुरी?
कुछ लोग माइक्रोफाइनेंसिंग को अच्छी सेवा मानते हैं जो व्यापार की सुरक्षित सुरक्षा और बचत के उदाहरण से सिखा जा सकता है, तो कुछ इसे बुरा समझते हैं जो उच्च ब्याज दरों और उच्च कड़ी मेहनत की दृष्टि से हो सकता है। कई अध्ययनों ने दिखाया है कि माइक्रोफाइनेंस अकेले वित्तीय स्थिति में सुधार के साथ-साथ सामाजिक स्थिति में भी सुधार कर सकती है। इससे ग्राहकों को वित्तीय स्वतंत्रता मिलती है और उनका सामाजिक दर्जा भी बढ़ता है।
क्या माइक्रोफाइनेंस लाभदायक है?
आखिरकार, क्या आपको लगता है, माइक्रोफाइनेंस लाभदायक है? या इसमें कुछ सुधार की आवश्यकता है? इसके बारे में अपने विचार हमसे साझा करें।
समापन:
इस सफलता के क्षण में हम देखते हैं कि माइक्रोफाइनेंस ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दिखाई है, छोटे व्यापारी और किसानों को आर्थिक समर्थन प्रदान करके। माइक्रोफाइनेंस एक महत्वपूर्ण वित्तीय सेवा है जो निम्न आय वाले लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। हालांकि, माइक्रोफाइनेंस से जुड़ी कुछ चुनौतियों को भी दूर करने की आवश्यकता है। यदि इन चुनौतियों को दूर किया जा सकता है, तो माइक्रोफाइनेंस गरीबी को कम करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
क्या आप भी माइक्रोफाइनेंस के प्रति आपके विचार साझा करना चाहेंगे? हमें कमेंट बॉक्स मैं लिखिये |
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